Skip to main content
ब्रह्मचर्य का पालन करने में भोजन का महत्व है?
प्रश्नकर्ता : उपवास किया हो, उस रात अलग ही तरह के आनंद
का अनुभव होता है, उसका क्या कारण?
दादाश्री : बाहर का सुख नहीं लेते तब अंदर का सुख उत्पन्न
होता है। यह बाहरी सुख लेते हैं इसलिए अंदर का सुख बाहर
प्रकट नहीं होता।
हमने ऊणोदरी तप आखिर तक रखा था। दोनों वक्त ज़रूरत से
कम ही खाना, सदा के लिए। ताकि भीतर निरंतर
जागृति रहे। ऊणोदरी तप यानी क्या कि रोज़ाना चार
रोटियाँ खाते हों तो दो खाना, वह ऊणोदरी तप
कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : आहार से ज्ञान को कितनी बाधा होती है?
दादाश्री : बहुत बाधा आती है। आहार बहुत बाधक है,
क्योंकि यह आहार जो पेट में जाता है, उसका फिर मद
होता है और सारा दिन फिर उसका नशा, कै़फ ही कै़फ
चढ़ता रहता है।
जिसे ब्रह्मचर्य का पालन करना है, उसे ख्याल
रखना होगा कि कुछ प्रकार के आहार से उत्तेजना बढ़
जाती है। ऐसा आहार कम कर देना। चरबीवाला आहार जैसे
कि घी-तेल (अधिक मात्रा में) मत लेना, दूध भी ज़रा कम
मात्रा में लेना। दाल-चावल, सब्ज़ी-रोटी आराम से खाओ पर
उस आहार का प्रमाण कम रखना। दबाकर मत खाना। अर्थात्
आहार कितना लेना चाहिए कि ऐसे के़फ (नशा) नहीं चढ़े और
रात को तीन-चार घंटे ही नींद आए, बस उतना ही आहार
लेना चाहिए।
इतने छोट़े-छोट़े बच्चों को बेसन और गोंद से
बनी मिठाइयाँ खिलातें हैं! जिसका बाद में बहुत बुरा असर
होता है। वे बहुत विकारी हो जाते हैं। इसलिए छोटे
बच्चों को यह सब अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए।
उसका प्रमाण रखना चाहिए।
मैं तो चेतावनी देता हूँ कि ब्रह्मचर्य पालना हो तो कंदमूल
नहीं खाने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : कंदमूल नहीं खाने चाहिए?
दादाश्री : कंदमूल खाना और ब्रह्मचर्य पालना, वह रोंग
बिलिफ (गलत दर्शन) है, विरोधी बात है।
प्रश्नकर्ता : कंदमूल नहीं खाना, जीव हिंसा के कारण है
या और कुछ?
दादाश्री : कंदमूल तो अब्रह्मचर्य को जबरदस्त
पुष्टि देनेवाला है। इसीलिए ऐसे नियम रखने की आवश्यकता है
कि जिससे उनका ब्रह्मचर्य टिका रहे।
यह लेख DADABHAGWAN.ORG से लिया है

Comments

Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य जीवन जीने के उपाय

ब्रह्मचर्य जीवन जीने के उपाय- शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’ ही जीवन शक्ति का भण्डार है। शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से भी इसका नुकसान होता है। अत: बचने के कुछ सरल उपाय निम्रानुसार है- 1.ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये सबसे पहले ‘मन’ का साधने की आवश्यकता है। अत: अन्नमय कोष की साधना करें। भोजन पवित्र एवं सादा होना चाहिए, सात्विक होना चाहिए। 2. कामुक चिंतन आने पर निम्र उपाय करें- * जिस प्रकार गन्ने का रस बाहर निकल जाने के पश्चात ‘छूछ’ कोई काम का नहीं रह जाता उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर से ‘वीर्य’ के न रहने पर होता है, इस भाव का चिंतन करें। * तत्काल निकट के देवालय में चले जायें एवं कुछ देर वहीं बैठे रहें। * अच्छे साहित्य का अध्ययन करें। जैसे- ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता, मानवी विद्युत के चमत्कार, मन की प्रचण्ड शक्ति, मन के हारे हार है मन के जीते जीत, हारिए न हिम्मत आदि। * अच्छे व्यक्ति के पास चले जायें। * आपके घर रिश्तेदार में रहने वाली महिला को याद करें कि मेरे घर में भी माता है, बहन है, बेटी है।

ब्रह्मचर्य की परिभाषा

ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा अखण्ड ज्योति May 1989 काम शक्ति का परिष्कार एवं ऊर्ध्वारोहण न केवल शारीरिक बलिष्ठता की दृष्टि से जरूरी, वरन् मानसिक प्रखरता के लिए भी अनिवार्य है। सृजनात्मकता एवं समस्त सफलताओं का मूलाधार भी यही हैं इसका आरीं इन्द्रिय संयम से होता है। किन्तु समापन ब्रह्म में एकाकार होकर होने के रूप में होता है। ब्रह्मचर्य की संयम-साधना दमन का नहीं, परिष्कार एवं ऊर्ध्वीकरण का मार्ग है। इसका सुंदरतम स्वरूप आदर्शों एवं सिद्धान्तों के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा के रूप में दिखाई पड़ता है। इस तथ्य से अवगत होने पर जीवनी शक्ति का क्षरण रुकता है। ब्रह्मचर्य का महत्व न समझने वाले व्यक्ति काम शक्ति का दुरुपयोग भोग लिप्सा-यौन लिप्सा में करते हैं। फलतः इसके दिव्य अनुदानों का लाभ, जो श्रेष्ठ विचारों- उदात्तभाव-संवेदनाओं के रूप में मिलता हैं, उसे नहीं उठा पाते। अद्भुत सृजनशक्ति आधार क्षणिक इन्द्रिय सुखों के आवेश में नष्ट होकर मनुष्य की प्रगति को रोक देता है। इससे वह अपने पूर्व संचित तथा अब की उपार्जित क्षमताओं को भी गँवा बैठता है, साथ ही दुरुपयोग का दुष्परिणाम भी भुगतता है। काम

ब्रह्मचर्य से बल संचय

ब्रह्मचर्य द्वारा आत्म बल का संचय अखण्ड ज्योति Feb 1969 सुख और श्रेय मन वह जीवन की दो महान उपलब्धियाँ मानी गई है। इनको पा लेना ही जीवन की सफलता है। सुख की परिधि का परिसर तक है। अर्थात् हम संसार के व्यवहार क्षेत्र में जो जीवन जीते है, उसका निर्विघ्न, स्निग्ध और सरलतापूर्वक चलते रहना ही साँसारिक सुख है। श्रेय आध्यात्मिक क्षेत्र की उपलब्धि है। ईश्वरीय बोध, आत्मा का ज्ञान और भव बन्धन से मुक्ति श्रेय कहा गया है। पार्थिव अथवा अपार्थिव किसी भी पुरुषार्थ के लिए शक्ति की अनिवार्य आवश्यकता है। शक्ति हीनता क्या साधारण और क्या असाधारण दोनों प्रकार की प्रगतियों के लिए बाधा रूप है। शरीर अशक्त हो, मन निराश और कुण्ठित हो, बुद्धि की निर्णायक क्षमता शिथिल हो तो मनुष्य इच्छा रहते हुए भी किसी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं कर सकता। संसार के सारे सुखों का मूलाधार साधनों को माना गया है। साधन यो ही अकस्मात् प्राप्त नहीं हो जाते। उनके लिये उपाय तथा परिश्रम करना होता है। रोटी, कपड़ा, आवास के साथ और भी अनेक प्रकार के साधन जीवन को सरलतापूर्वक चलाने के लिए आवश्यक होते है। इनके लिये कार रोजगार, म